मानव इतिहास
मानव रचना उत्पति बड़ी रोचक तरीके से हुआ है, कहा जाता है पहले पृथ्वी पर डायनासोर का राज हुआ करता था डायनासोर जो विशालकाय जीवो में से एक थे. जिसका अवशेष मानव ने खुदाई से प्राप्त किया है. कहा जाता है जो आज हम इंधन के रूप में इस्तेमाल करते है वो उनके शरीर के अवशेष व हड्डियों से प्राप्त हो रहें है. इतिहासकार कहते है की डायनासोर का अंत एक उल्का पिंड का हमारे धरती से टकराने से हुआ था उस टकराव से जमीन के अन्दर रहने वाले जीव ही बच पाए थे जो एक समय बाद ऊपर जमीन के सतह पर आने लगे थे. उसी क्रम में मानव भी सतह पर आया था जिसमें निरंतर परिवर्तन हो रहा था. मानव पहले बन्दर की तरह होता था इसलिए बन्दर को इन्सान अपना पूर्वज कहता है. मानव जो पहले अफ्रीका के जंगलो में रहता था जो बाद में धीरे-धीरे सभी स्थानों पर फैलने लगे.
मानव के प्रगति को चार भागो में बाटां गया है जो इस प्रकार से है -
- आदि काल
- पाषण काल
- मध्ययुगीय काल
- आधुनिक काल
आदिकाल आदिकाल में मानव का जीवन घुमतु होता था उनके पास कोई घर या औजार नही होता था. शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे. उनका कोई स्थाई जीवन यापन का तरीका नही था. अपनी शुरक्षा जंगलो में छुप कर करते थे. ये गुफाओं में रहा करते थे.
पाषण काल
पाषण काल से तात्पर्य है की पत्थरों का युग. इस युग में मानव पत्थरों का उपयोग औजार बनाने में किया करते थे और गुफाओं में रहा करते थे. पत्थरों से बने हथियार से जानवरों का शिकार किया जाता था. इनका मुख्य आहार कंद-मूल, फल, और शिकार से प्राप्त मांस हुआ करता था.
पाषण काल को आप तीन भागों में विभक्त करके समझ सकते है. जो इस प्रकार है-
- पुरापाषण काल
- नव पाषण काल
- ताम्र पाषण काल
पूरापाषण काल(२५००० ई. पूर्व.-10000 ई. पूर्व.)यह मानव इतिहास का प्रारंभिक दौर और आदिकाल का अंतिम दौर था. जिसमे मानव पत्थरों से हथियार बनाकर जानवरों का शिकार किया करते थे. पूरापाषण काल 25००० ई. पूर्व. से 10000 ई. पूर्व. तक का समय था. इस समय मानव पत्थरों से बने गुफाओं में रहा करते थे. इनका हथियार नुकीले पत्थरों से बना होता था और इनका मुख्य भोजन कंद-मूल,फल और मांस हुआ करता था.
नवपाषण काल(६००० ई. पूर्व.-१००० ई. पूर्व.)
इस युग में मानव जानवरों का शिकार अपने नये पत्थरों से बने हथियार से किया करते थे. मानव पत्थरों से हाथ की कुल्हाड़िया,दतैल आदि हथियार का उपयोग करते थे. मानव इस सयम पत्थरों से बने गुफाओं में और फल, कंद-मूल व जानवरों के मांस का, आहार के रूप में खाया करते थे.
ताम्र पाषण काल
यह नव पाषण का अंतिम और ताम्र पाषण काल का उदय का समय था. इस युग में मानव धातुओं का प्रयोग करना सुरु किया था. तांबे से हथियार बनाया जाता था. आप इसे नये युग का आरम्भ भी मान सकते है.
सिंधु घाटी की सभ्यता(2500 ई. पूर्व. से 1750 ई. पूर्व.)
सिंधु घाटी की सभ्यता में दो नाम प्रचलित है हडप्पा और मोहनजोदड़ो. सिंधु घाटी की खुदाई सर दयाराम सहनी के नेतृत्व में सन् 1721 में हडप्पा की खुदाई किया गया था. उसके बाद अगले साल सन् 1722 में सर राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खुदाई की गयी थी. जिसका उलेख सबसे पहले चार्ल्स मैसन ने सन् 1726 में उलेख किया था. इस सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो,काली,बंगा,लोथल,धोलावीरा,राखिगड़ और हड़प्पा प्रमुख केंद्र हुआ करता था. इतिहासकरो के अनुसार यह अत्यंत विकसित शहर थे.
इसकी सबसे विशेष बात थी यह की नगर निर्माण शैली जो अत्यंत सुन्दर और व्यवस्थित ढंग से बने होते थे. यह की सड़के एक दुसरे को समकोण पर काटते थे और नगर आयताकार खंड में बंटा हुआ था. हड़पा और मोहनजोदड़ो के अपने अपने दुर्ग बने हुए थे जो सामान्य लोगों के घर से काफी बड़े और भव्य हुआ करता था जिस पर मिले सबूत के अनुसार उन भवनों में राज परिवार रहा करते थे. सामान्य लोगो की भवन भी बड़े बड़े थे. इन सबको देख कर लगता था की ये नगर अत्यंत सभ्य व विकसित हुआ करता था. मोहनजोदड़ो में खुदाई से प्राप्त विशाल सार्वजनिक स्नानागार जिसका जलाशय दुर्ग में हुआ करता था यह 11.88 मीटर लम्बा और 7.1 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है. तल तक जाने के लिए सीडी बनाई गयी थी स्नानागार का फर्श पकी ईटो से बना हुआ था पास में ही कुआँ और कपडे बदलने के लिए रूम बना हुआ था. कुएं से पानी भरा जाता था. सबसे अद्भुत संरचना वह की पानी निकास नाली थी जो अत्यंत सुनियोजित तरीके से बनाया गया था. सभी घरो से पानी एक नली द्वारा बाहर निकलता था . यह हर नगर के हर छोटे और बड़े माकन में प्रांगण और स्नानागार होता था. जो उस समय के लिए अद्भुत था. इसके साथ ही वह के बड़े-बड़े अनाज रखने के लिए कोठार का निर्माण किया गया था.
भारत के इन राज्यों में सिंधु घाटी के शहरों के नाम है-
- गुजरात में - रंगपुर,लोथल,धोलावीरा,देसुल
- हरियाणा में - राखिगड़,कुणाल,बनवली
- पंजाब- बाड़ा,रोपड़,संघोल
- महाराष्ट्र में - दैमाबाद, बनावली, कुणाल,मिताथल
- राजस्थान में- कालीबंगा
- जम्मु-कश्मीर में - माडा
- उत्तर-प्रदेश - अलमगीरपुर,
सिंधु -घाटी के लोगो का जीवन के बारे में इस प्रकार से समझ सकते है -
आर्थिक जीवन
सिंधु -घाटी की आर्थिक जीवन काफी संपन्न हुआ करता था इस बात को निम्न बांतों से समझा जा सकता है-
1. व्यापार
- सिंधु-घाटी में मिले साक्ष के अनुसार पता चलता है की वह पर व्यापार किया जाता था. जो काफी फला-फुला था . सिंधु-घाटी सभ्यता में पत्थर,धातुओं,शिप,शंख आदि का व्यापार किया जाता था.
- राजस्थान में तांबे तथा जावर में चांदी का व्यापार किया जाता था.
- कर्नाटक से सोने का,
- ओमान से तांबे का व्यापार,
- गुजरात,ईरान और अफगानिस्थान से बहुमूल्य पत्थरों का आयात किया जाता था.
2. कृषि व पशुपालन सिंधु-घाटी नदी के किनारे होने के कारण वह की भूमि अत्यंत उपजाऊ होती थी. जिससे वह के लोग खेती किया करते थे. बाड़ से बचने के लिए ईंटो से दीवार बनाया गया था. वह के लोग बाड़ के बाद बीज रोपण करते थे और अगली बाड़ आने से पहले फसल काट लेते थे. सिंधु-घाटी की सभ्यता में लोग गेहू,जौ,राई,मटर,ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे. इसके आलावा वे तिल और सरसों,कपास भी उपजाते थे.
इसके साथ सिंधु-घाटी सभ्यता में पशुपालन के भी साक्ष्य मिले है. उस समय के लोग कुत्ते,बिल्ली,मुर्गिया,बैल-गाय,भैस,बकरी,भेड़ और सूअर पाला किया जाता था.
3. उद्योग-धन्धे
इन्हें शिल्प और तकनिकी का भी ज्ञान था यह कस्य,टिन से बने मुर्तिया प्राप्त किया गया था. यह नगरों में कई उद्योग-धन्धे प्रचलित थे जैसे मिट्ठी के बर्तन बनाना,मिट्ठी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाया जाता था. इसके साथ ही कपडे का व्यवसाय,जौहरी का काम और मनके व ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था.
सामाजिक जीवन
सिंधु-घाटी में प्राप्त अवशेष से ज्ञान होता है की वह के लोगों के सामाजिक जीवन में धर्म का स्थान था वह के लोग धार्मिक हुआ करते थे. स्त्री के मूर्ति में मिले गर्भ से पौधे का उत्पत्ति दिखाया गया था. इससे लगता है वह के लोग धरती को माता के रूप में पूजते थे. सरस्वती नदी से प्राप्त पानी से उनके कुएं भरे जाते थे इसलिए वे लोग कुएं के सामने दीप जलाने का साक्ष मिला था. इसके साथ ही 4 मुख वाले शिव के अवतार एकलिंगनाथ जी की पूजा की जाती थी. सिन्धु-घाटी के लोग अपने खेतों व नदी किनारे पूजा किया करते थे और स्नान करने का नियम था होगा इसलिए नगरों मर बड़े-बड़े स्नानागार बनाये होंगें ताकि डुबकी लगाकर पूजा अर्चना किया जाता था होगा.