मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

आंग्लो-मराठा युद्ध (1775 ई.-1818ई.)

आंग्लो-मराठा युद्ध (1775 ई.-1818ई.)

आंग्लो-मराठा युद्ध(1775-1782 ई.) 

आंग्ल-मराठा युद्ध अंग्रेजो और मराठो के बीच में  तीन बार हुआ था. तीनों युद्ध मराठा शासकों के आपसी झगड़े और अंग्रेजों के कुटील निति के कारण हुआ था. मराठा और अंग्रेजों के बीच हुए इस युद्ध से मराठा महासंघ का पूरी तरह से विनाश हो गया. क्योकि मराठों में उत्पन्न आपसी मतभेद उन्हें एकजुट होने नही दिया. रघुनाथ राव द्वारा पेशवा बनने की लालसा में अंग्रेजों से मित्रता की और सूरत की संधि की. इसके बाद मई 1782 ई. में सालबाई की सन्धि हुए जिसमें अंग्रेजों को बंबई के पास सालसेत द्वीप पर अपना कब्जे के रूप में स्थान प्राप्त हुई. बाजीराव द्वितीय ने पहली बसीन की संधि(1803-०६) की और दूसरा बसीन की संधि(1817-1818) की. इस प्रकार बाजीराव द्वितीय ने अपनी स्वतंत्रता अंग्रेजों को सौफ दी. इस युद्ध से मराठाओं का पतन हो गया और पतन का मुख्य कारण बाजीराव द्वितीय की कायरता और धोकेबाजी थी.

पहला आंग्ला-मराठा युद्ध

प्रथम आंग्ला-मराठा युद्ध 1775 ई.- 1782 ई. तक हुई थी. रघुनाथ राव द्वारा मराठा संघ की पेशवा की गद्दी प्राप्त करने की लालसा के कारण वह अंग्रेजों से मित्रत्ता कर ली और 1775 ई. में अंग्रेजों से सूरत की संधि की जिससे बंबई राज(अंग्रेज सरकार) उसे डेढ़ लाख मासिक खर्च पर 2500 सैनिक देगी. इसके बदले बंबई में स्थित सालसेत द्वीप और बसीन को देने का वचन दिया. इसके बाद 1778ई. में मराठों व अंग्रेजों के बीच हुए बड़गांव नामक स्थान पर अंग्रेजों की बुरी तरह से हर हो गया था. जिससे 1782 ई. में सलबाई की संधि करनी पड़ी. इस प्रकार प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध रघुनाथ राव के कारण हुआ था.

सालबाई सन्धि -

  1.  अंगेजों को राघव राव का साथ छोड़ने और रागोबा को 25000 रूपये की मासिक स्वीकार कर लिया.
  2. अंग्रेज ने सालसोठ और भडोस से अपना कब्ज़ा छोड़ दिया.
  3. अंगेजों ने माधव राव द्वितीय को पेशवा माना,
  4. और यमुना नदी के पश्चिम प्रदेश पर सिंधिया पर अधिकार कायम रहा. 
द्वितीय आंग्ला-मराठा युद्ध 

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध 1803 ई.-1805 ई. तक हुआ. बाजीराव द्वितीय ने गद्दारी कर आत्मसमर्पण करने के बाद अंग्रेज होल्कर,भोंसले,महादजी शिन्दे को भी अधीन करने के लिए कूटनीति द्वारा मराठों में आपसी फुट व कलह को बढावा दिया. इस युद्ध के बाद मराठों और अंग्रेजों में तीन संधियाँ हुई जो इस प्रकार है-

  1. 1803 में भोंसले परिवार से देवगांव की संधि,
  2. 1803 में सिंधिया परिवार से सुर्जीअर्जनगाँव की संधि,
  3. 1805 में होल्कर परिवार से राजपुरघाट की संधि
तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध

तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध 1817-1818 ई. तक चला. यह युद्ध लार्ड होस्टिंग(१८१३ - १८२३ई.) के भारत अंग्रेजी भाग के गवर्नर-जनरल बनने के बाद लड़ा गया. यह मराठा का अंग्रेजों से अंतिम युद्ध था जिसके बाद उनका पतन हो गया. तृतीय आंग्ला-मराठा युद्ध के बाद कुछ सन्धिया हुई जो इस प्रकार है-

  1. अंग्रेजो ने पेशवा को 13 जून 1817 को 5 नवम्बर 1817 में दौलतदाव सिंधिया के साथ ग्वालियर की संधि की जिसमे महादजी शिन्दे पिंडारियों के दमन में  अंग्रेजों का साथ देना था.
  2. जून १८१७ में अंग्रेजों ने पूना की संधि की,जिसमे पेशवा को अपनी मराठा संघ की अध्यक्षता छोड़नी थी.

शनिवार, 27 जनवरी 2024

गुप्त साम्राज्य व उनके शासकों की सम्पूर्ण जानकारी


गुप्त साम्राज्य व उनके शासक
गुप्त साम्राज्य

गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारत का एक तेली साम्राज्य था. गुप्तवंश का शासनकाल 240ई से 550 ई. तक था. 110 वर्षो तक लगभग पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया. मौर्य वंश के पतन के पश्चात लम्बे समय तक प्राचीन भारत में कोई राजनितिक एकता स्थापित नही कर पाया था लेकिन गुप्त वंश ने नष्ट हुई राजनितिक अस्थिरता को पुनः एकता स्थापित किया. गुप्त वंश की उत्पत्ति तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशम्बी के रजा श्री गुप्त से हुई थी. श्री गुप्त एक भारशिवों के अधीन छोटे से राज्य के राजा था. श्रीगुप्त 240 ई. से 280 ई. तक वह के राजा था. उसके बाद उनके पुत्र घटोत्कच(280ई.-320 ई.) गुप्त साम्राज्य का शासक बना रहा. चौथी शताब्दी में एक स्वतंत्र गुप्त साम्राज्य की की स्थापना हुई. पहले स्वतंत्र साम्राज्य के शासक चंद्रगुप्त प्रथम था. जिन्होंने विवाह सम्बन्ध द्वारा अपने राज्य का विस्तार किया. चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी के राजकुमारी के साथ विवाह किया और एक जुटता की. पुत्र समुद्रगुप्त ने राज्य का विस्तार का कार्य किया. समुद्र गुप्त ने उतरी और पूर्वी भारत में तथा मध्य भारत और गंगा घाटी के शासको पर अपना अधिपत्य स्थापित किया. साम्राज्य के तीसरे शासक विक्रमादित्य ने उज्जैन तक साम्राज्य का विस्तार किया. इनके समय को स्वर्णिम युग कहा जाता है ये सांस्कृतिक और बौधिक उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध थे. इसके बाद उतराधिकारी के रूप में कुमार गुप्त व स्कंद गुप्त थे.

चन्द्र गुप्त प्रथम

सन् 320 में चन्द्रगुप्त प्रथम एक स्वतंत्र राजा बना. चन्द्रगुप्त ने लिच्छवी संघ को अपने साम्राज्य में मिला लिया. चन्द्रगुप्त का शासन काल 320 ई. से 335 ई. तक था. चन्द्रगुप्त ने लिच्छवीयों के सहयोग प्राप्त करने के लिए उनकी राजकुमारी कुमार देवी के साथ विवाह किया. विवाह के उपरांत चन्द्रगुप्त प्रथम को लिच्छवीयों का राज्य प्राप्त हुआ और वैशाली पर भी अपना अधिकार स्थापित किया.  लिच्छवियों के साथ सम्बंध स्थापित कर वह मगध साम्राज्य की स्थापना की. चन्द्रगुप्त प्रथम ने कौशम्बी तथा कौशल के महाराजाओं को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया और पाटिलपुत्र को अपनी राजधानी घोषित की. चन्द्रगुप्त प्रथम 335 ई. में मृत्यु उपरांत उनके  पुत्र समुद्रगुप्त राज गद्दी पर विराजमान हुआ.

समुद्रगुप्त 

चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद गुप्त साम्राज्य का वारिस 335 ई. में समुद्रगुप्त बना. समुद्रगुप्त ने लिछिवियों के दुसरे राज्य नेपाल को भी राज्य में मिलाया. समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दृष्ठि से गुप्त साम्राज्य का उत्कर्ष काल माना जाता है और प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महान शासकों में मानित हुआ. समुद्रगुप्त अच्छे शासक के साथ एक अच्छे कवी तथा सगीतज्ञ भी था. समुद्रगुप्त के उदार,दानशील,असहायी तथा अनाथो को आश्रय दिया. समुद्रगुप्त की मृत्यु ३८० ई. में हुआ.समुद्रगुप्त के दो पुत्र थे रामगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितिया. पिता के मृत्यु के पश्चात रामगुप्त राजा बना किन्तु शकराज से बुरी तरह हारने के कारण तथा संधि में अपनी पत्नी को शकराज को देने के वादे से वह अत्यंत निंदनीय हो गया. उसके पश्चात चन्द्रगुप्त द्वितीय या विक्रमादित्य रामगुप्त की हत्या कर गुप्तवंश का शासक बना.

चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य 

चन्द्रगुप्त द्वितीय 375 ई. में सिहासन पर बैठा था. पिता समुद्रगुप्त और माता महिसी दत्तदेवी थी. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ. अपने भाई की हत्या कर सिहासन प्राप्त की और ४० वर्षो तक(375 ई.-४१४ ई.) शासन किया. चन्द्रगुप्त द्वितीय का विवाह नाग कुमारी कुबेर नाग के साथ तथा अपने भाई की पत्नी ध्रुवस्वामिनी के साथ हुआ. कुबेर नाग से एक पुत्री प्रभावती गुप्त तथा ध्रुवस्वामिनी से पुत्र कुमार गुप्त प्रथम हुआ. चन्द्रगुप्त ने शाकवंश को परास्त करने के लिए पुत्री का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ तथा पुत्र का विवाह  कदम्ब राजवंश में कराया. इसके बाद शकवंशों का पतन कर गुजरात व मालवा के प्रदेश पर राज कर एक शक्तिशाली साम्राज्य का विस्तार किया. इस विजय के बाद उज्जैन गुप्त साम्राज्य का नया राजधानी बना.

चन्द्रगुप्त द्वितीय का साम्राज्य विस्तार 

  • शकवाहों की पराजय - गुजरात व मालवा के प्रदेश पर आक्रमण कर अपने अधीन किया.
  • वाहीक पर विजय- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सिन्धु के पांच मुखो पर विजय प्राप्त किया और पंजाब तक अधीन कर लिया.
  • बंगाल राज्यों को अपने अधीन किया- बंगाल के शासकों पर विजय प्राप्त किया और अपने अधीन किया.
  • गणराज्यों की विलय- समुद्रगुप्त के मृत्यु के पश्चात कई अपने गणराज्य स्वतत्र घोषित कर लिया था. किन्तु चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उन्हें वापास अपने अधीन कर लिया.
चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन कला और सहित्य के लिए स्वर्णिम युग था. चन्द्र गुप्त ने कला और साहित्य प्रिय को अपने राज्य में आश्रय दिया था. सन् 414 में मृत्यु उपरांत कुमार गुप्त गुप्तवंश के नया शासक बना.

कुमार गुप्त प्रथम 

कुमार गुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय के मृत्यु के पश्चात 415 ई. में गद्दी पर बैठा. कुमार गुप्त अपने दादा की तरह अश्वमेघ यज्ञ के सिक्के जारी किया. कुमार गुप्त का शासन काल (415 ई - 455 ई.) 40 वर्षो तक शासन किया. अपने भाई गोविन्द गुप्त को वैशाली का राज्यपाल बनाया. कुमार गुप्त के समय राज्य में शांति और सुव्यवस्थित था. वह अपने साम्राज्य की पूर्णरूप से रक्षा की थी. कुमार गुप्त के शासन में ही नालल्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी. कुमार गुप्त प्रथम स्वम वैष्णव धर्म के अनुयायी होते हुए भी अन्य धर्मो का सम्मान किया. कुमार गुप्त के समय कई घटनाएँ घटी थी जैसे पुष्यमित्र ने गुप्त साम्रज्य पर हमला कर दिया था. जिसके उत्तर के रूप में कुमार गुप्त के पुत्र स्कंद गुप्त ने युद्ध लड़ा और पुष्यमित्र को परास्त किया. विजय यात्रा यानि कुमार गुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ कराया था.

स्कंदगुप्त 

स्कंदगुप्त पिता के मृत्यु के बाद 455 ई. में सिहासन पर बैठा. स्कंदगुप्त का शासन काल 12 वर्षो की थी. स्कंदगुप्त गुप्त को सुरुवाती समय में वाकाटक शासन नरेन्द्र ने विद्रोह कर मालवा पर अधिकार कर लिया था. किन्तु स्कंदगुप्त ने उसे परास्त कर अपने राज्य में मिला लिया. स्कंदगुप्त एक अच्छा राजा था वह अपने प्रजा की चिंता रहती थी. स्कंदगुप्त शासन काल में संघर्षो की काल था हुण पश्चिम से रोमन साम्राज्य ने गुप्तवंश को हमेशा चुनौती दी. हुण के गंधार पर जीत के बाद गुप्तवंश ने हुण को बुरी तरह परास्त किया. चाचा गोविन्द गुप्त ने भी विद्रोह किया और मालवा पर कब्ज़ा किया. किन्तु स्कंदगुप्त ने इस विद्रोह का दमन किया. स्कंदगुप्त की मृत्यु 467 ई. में हुआ. स्कंदगुप्त के मृत्यु उपरांत सौतेले भाई पुरुगुप्त शासक बने किन्तु वृद्धा अवस्था होने के कारण वह राज्य को सही से सभाल नही पाया था. जिसके बाद धीरे-धीरे गुप्त वंश पतन की ओर बड़ा. 

इसके बाद और भी राजा हुए जो स्कंदगुप्त के मृत्यु पश्चात 467 ई. से 550 ई. तक शासन किया किन्तु स्कंदगुप्त के शासन के बाद गुप्तवंश का पतन शुरू हो गया था.  

गुप्त साम्राज्य की वंशावली 

  • श्री गुप्त प्रथम (3 री शताब्दी के अंत में -280 ई.)
  • घटोत्कच ( 280 ई. - 319 ई.)
  • चन्द्रगुप्त प्रथम (319 ई. - 335 ई.)
  • समुद्रगुप्त (335 ई. - 375 ई.)
  • रामगुप्त ( 375 ई.)
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय ( 375 ई. - 415 ई.)
  • कुमार गुप्त प्रथम ( 415 ई. - 455 ई. )
  • स्कंदगुप्त ( 455 ई. - 467 ई.)
  • पुरुगुप्त ( 467 ई. - 473 ई. )
  • कुमार गुप्त द्वितीय ( ४७३ ई.-४७६ ई.)
  • बुद्ध गुप्त ( ४७६ ई. - 495 ई.)
  • नरसिंह गुप्त ( 495 ई. - 530 ई.)
  • कुमार गुप्त तृतीय ( 530 ई. - 540 ई.)
  • विष्णु गुप्त ( 540 ई. - 550 ई.)  

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

मौर्य साम्राज्य के सम्राटों का परिचय व पतन के कारण

मौर्य साम्राज्य

 मौर्य साम्राज्य 

मौर्य राजवंश या साम्राज्य 322 ई.पु. से185 ई.पु. तक एक शक्तिशाली राजवंश था. मौर्य साम्राज्य 137 वर्षो तक चली थी. सम्राट चद्र्गुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से मगध के राजा धनानद को मार कर मगध जैसे शक्तिशाली राज्य के राजा बना था. यह साम्राज्य मगध से शुरु होकर पुरे भारत भारत पर सहित ईरान,अफगानिस्थान देशो में भी मौर्य साम्राज्य फैला हुआ था. चद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई पु. में इस साम्राज्य की स्थापना की थी. उस समय इनकी राजधानी पाटलीपुत्र थी. सिकन्दर के भारत पर हमला करने पर कई क्षेत्रिय राज्यों में मतभेद उत्पन्न हो गया था. जिसका फ़ायदा चद्रगुत मौर्य ने भली-भाति उठाया और मौर्य वंश को भारत में एक शक्तिशाली राजवंश बनाकर विश्वभर में ख्याति प्राप्त की.

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य 

सम्राट चन्द्रगुप्त का शासन काल लगभग 322 ई.पु. से 298 ई. पु. तक था. बौध धर्म और जैन धर्म के अनुसार सम्राट चद्रगुप्त का जन्म पिप्प्लिवन में हुआ था. उनके पिता का नाम चंद्रवर्धन मौर्य थे जिसकी हत्या मगध के राजा धनानंद ने की थी. बचपन में चन्द्रगुप्त एक गोपालक के गुलाम हुआ करते थे एक दिन चाणक्य धनानद द्वारा अपमानित होकर रास्ते से जा रहा था तो उसने चन्द्रगुप्त को देखा उसमे एक राजा के गुण नजर आया . उसके बाद चाणक्य ने उस गोपालक से एक हजार पण देकर चन्द्रगुप्त को आजाद कराया और उसे तक्षशिला ले गए. तक्षशिला में सभी प्रकार के कलाओं में पारंगत कराया था. 317 ई.पु. चन्द्रगुप्त ने सम्पूर्ण सिंध और पंजाब को जीत लिया था. इसके पश्चात अपनी सेना सहित मगध पर आक्रमण कर दिया और तकालीन राजा धनानंद को युद्ध में हराया और मगध के सम्राट बन गया. इसके बाद वह सिकन्दर के जीते हुए राज्यों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. 323 ई.पु. में सिकन्दर के मृत्यु के बाद सेल्यूकस सिकन्दर का उतराधिकारी बना. सेल्यूकस पुनः भारत पर हमला करना शुरु किया किन्तु चन्द्रगुप्त ने उसे हरा दिया उसके पश्चात् उनके बीच में संधि हुई और अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ करा दिया. अब चन्द्रगुप्त एक विशाल सम्राज का सम्राट बन चूका था. चन्द्रगुप्त ने काबुल,बलुचिस्थान,पंजाब,गंगा-यमुना का मैदान,बंगाल,गुजरात,कश्मीर,कर्नाटक में अपना शासन स्थापित किया. 298 ई.पु. में सम्राट चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म अपना लिया था और अपना राजपाठ त्याग कर संलेखना उपवास द्वारा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना शरीर त्याग दिया था. इस प्रकार सम्राट चन्द्रगुप्त ने 24 साल तक राज्य किया. इसके बाद अगला मौर्य साम्राज्य का उतराधिकारी सम्राट बिंदुसार बन जाता है.

सम्राट बिन्दुसार मौर्य 

सम्राट बिन्दुसार  मौर्य राजपथ ग्रहण करने के बाद जादा कुछ ना करते हुए पिता द्वारा छोड़े गए राज्यों पर ही शासन किया.बिन्दुसार ने 298 ई.पु. में मगध के राजा बने थे और 25 वर्षो तक शासन किया था. इनके काल में दो विद्रोह हुआ था उजैन और तक्षशिला में इस विद्रोह को दबाने के लिए सम्राट बिन्दुसार ने अपने बड़े बेटे सुसेन को भेजा किन्तु वह असफल रहा. उस समय अशोक उपराजा बने थे तो उन्हें इस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा और वे इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए. सम्राट बिन्दुसार के पास 500 सदस्य वाली मंत्रीपरिषद थी जो उनके राज्य के कार्यों में सहायता करते थे. बिन्दुसार की मृत्यु 273 ई.पु. में हुई थी.

सम्राट अशोक द ग्रेट 

सम्राट अशोक भारत में ही नही वरन पुरे विश्व के इतिहास में महान राजा के रूप में ख्याति प्राप्त है. सम्राट अशोक की पत्नी का नाम देवी था. जिससे महेंद्र और संघमित्र का जन्म हुआ था. पिता के शासन काल में अशोक ने उजैन और तक्षशिला के विद्रोह को पूरी तरह से दबा दिया था. सम्राट अशोक ने अपने 99 भाई का हत्या कर 272 ई.पु. में मगध के नये सम्राट के रूप स्थापित हो गए थे.सम्राट अशोक के समय में उड़ीसा के कलिंग में विद्रोह उत्पन हो गया था. जिसका दमन करने के लिए सम्राट अशोक ने कलिंग में भीषण नरसंहार कर दिया था. इस नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक को बहुत ग्लानि हुई जिससे उनका ह्रदय परिवर्तन हो गया. इसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया और भगवान बुद्ध के वचनों को शिलान्यास और शिलालेखों द्वारा प्रचार करना शुरु किया. सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में उपगुप्त नाम के भिक्षुक ने दीक्षा दी थी. अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए अपने कोषागार के पण को खाली कर दिया था. सम्राट अशोक ने देवानाप्रिय,प्रियदर्शी' जैसी उपाधि धारण की थी. भारत समेत एशिया के देशो में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया जैसे सीरिया,मिश्र,चीन,नेपाल था. युद्ध से मन उब जाने के बाद भी सम्राट अशोक के पास विशाल सेना थी ताकि कोई भी राजपाठ पर हमला ना कर दे और साम्रज्य के पतन को रोका जा सके. बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भी किसी अन्य धर्म का पालन करने के छुट प्रदान थी जनता को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने की आजादी थी. सम्राट अशोक ने भारत को जोड़ने में मुख्य भूमिका निभाई थी. सम्राट अशोक के शासन काल में ईरान- अफगानिस्थान से भारत के निचले हिस्से के कुछ हिस्से को छोड़ कर बाकि सभी हिस्सों पर अशोक का शासन था. सम्राट अशोक ने लगभग (272 ई.पु.-236 ई.पु). तक शासन किया था. सम्राट अशोक के मृत्यु के पश्चात दशरथ मौर्य ने राजसिहासन ग्रहण किया था. मौर्य साम्राज्य का अंतिम सम्राट बृहद्रथ मौर्य था जिसे पुष्यमित्र सुंग ने हत्या कर दी थी. 

मौर्य साम्राज्य का पतन 

मौर्य साम्राज्य जो की 137 वर्षो तक राज किया किन्तु 185 ई.पु. तक मौर्य साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया था. अशोक ने अपने सभी भाइयों की हत्या का दी थी जिससे राज्य सामंत दूसरों को बनाना पड़ा था परिणामस्वरुप अशोक के मृत्यु पश्चात सभी विद्रोह कर स्वतंत्र हो गये. अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र सुंग ने हत्या कर दी थी. इसके बाद मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया.   

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण 

मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण इस प्रकार से है-

  •   अयोग्य और निर्बल उतराधिकारी का होना 
  • प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीयकरण 
  • राष्ट्रिय चेतना का आभाव होना 
  • आर्थिक एवं सांस्कृतिक असमानता का होना
  • प्रान्तीय शासकों के अत्याचार 
  • अधिक कर वसूल करना
  • अशोक की धम्म निति 
  • अमन्यों के अत्याचार
  • धार्मिक निति 
  • राज परिवार का भोग विलास में पड़ जाना.
  • अन्य धर्मों का विरोध करना
सबसे बड़ा कारण था अशोक का बौद्ध धर्म अपनाना. बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने धम्मविजय नीति कों मान्यता दी जिससे राज्य विस्तार के लिए कोई युद्ध नही लड़ा गया.धीरे-धीरे मौर्य साम्राज्य के शासन में सम्राट के पास वरिष्ट पदाधिकारियों पर नियंत्रित नही रख पाया और आर्थिक संकट भी बड़ने लगा था. क्योकि सम्राट अशोक ने अपना सारा राजकोस बौद्ध धर्म को बनाने में खली कर दिया जिससे राज्य खर्च बड़ने लगा.
 
मौर्य साम्राज्य की वंशावली(322 ई.पु.-185 ई.पु.
  1. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई. पु.- 297 ई.पु.)
  2. सम्राट बिन्दुसार मौर्य (297 ई.पु.-273 ई.पु.)
  3. सम्राट अशोक मौर्य (268 ई.पु.-232 ई.पु.)
  4. सम्राट दशरथ मौर्य (232 ई.पु.-224 ई.पु.)
  5. सम्राट सम्प्रति मौर्य (224 ई.पु.-215 ई.पु.)
  6. सम्राट शालिसुक मौर्य (215 ई.पु.-202 ई.पु.) 
  7. सम्राट देववर्मन मौर्य (202 ई.पु.-195 ई.पु.)
  8. सम्राट शतधन्वन मौर्य (195 ई.पु.-187 ई.पु.)
  9. सम्राट बृहद्रथ मौर्य  (187 ई.पु.-185 ई. पु.)  

सोमवार, 22 जनवरी 2024

बौद्ध धर्म,भगवान बुद्ध का परिचय

 बौध धर्म

बौध धर्म एक भारतीय धर्म है जो गौतम बुद्ध के ज्ञान को प्रसारित करता है उनके वचनों का अनुसरण करता है. इसकी उत्पत्ति 5वी सदी ५६३ ईसा. पूर्व. में पूर्वी गंगा के मैदान में हुई थी जो धीरे-धीरे पुरे एशिया में फ़ैल गयी. यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है जिसके 2 अरब से भी अधिक अनुयायी है. बुद्ध का अर्थ जाग्रत व्यक्ति होता है यह नाम उनकों ज्ञान प्राप्त होने के बाद पड़ा था. जो श्रमण परंपरा को मानते थे. प्राचीन भाषा में इन्हें शाक्य मुनि कहा जाता था. बुद्ध ने प्रथम धर्म उपदेश अपने साथी साधुओं को दिया था . उन्होंने चार सत्य और अष्टांगिक मार्ग को अपनाकर धर्म का उपदेश सुरु किया था.   

बौद्ध धर्म,भगवान बुद्ध का परिचय

गौतम बुद्ध का परिचय

गौतम बुद्ध एक भारतीय शाक्य मुनी थे जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी इन्हें बोधगया में एक पीपल के पेड़ के निचे  ज्ञान प्राप्त हुआ था. कथा अनुसार इनका जन्म 563 ईसा. पूर्व. के लगभग शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी वन में हुआ था वर्त्तमान में यह स्थान भारत से 7 किलोमीटर दूर नेपाल में स्थित है. यह हिमालय के निकट कोशल में रहने वाले गौतम गोत्र के कहलाते थे. उनके पिता का नाम राजा शुध्दोदन तथा माता मायादेवी थी. बुद्ध के जन्म का नाम सिद्धार्थ था.जन्म के कुछ ही दिन में उनकी माता का देहांत हो गया था. जिसके पश्चात उनका पालन-पोषण उनकी विमाता गौतमी द्वारा हुआ था. बुद्ध के नामकरण के समय असित मुनि ने इनके कुंडली में बत्तीस महापुरुष लक्षणों को देखकर भविष्यवाणी की थी की एक महान सन्यासी बनेंगा. लेकिन पिता चाहते थे की वो राजा बने इसलिए उन्होंने शिक्षा के साथ अस्त्र-शस्त्र में भी पारंगत किया किन्तु उनके अन्दर वैराग्य उत्पन्न होने लगते थे. कुछ समय बाद पिता के कहने पर उन्होंने दण्डपाणी की पुत्री यशोधरा के साथ उनका विवाह हो गया. विवाह उपरांत उनके पुत्र राहुल हुए. भविष्यवाणी को ध्यान में रखते हुए राजा शुद्धोदन ने बुद्ध के लिए विशिष्ट प्रासाद महलों का निर्माण करवाया था. ताकि उनका मन वैराग्य की ओर ना जाए ,इसके लिए राजा ने हर संभव प्रयास किया किन्तु भाग्य का लिखा कोई नही टाल सकता था. सिद्धार्थ लोगो के दुःख दर्द का देखकर अत्यंत दुखी हो जाते थे. जिनके बाद गौतम ने इनका कारण जानने का संकल्प लिया . आधी रात को पत्नी-पुत्र को छोड़कर  उन्होंने अपने राज्य का त्याग कर वन की ओर प्रस्थान हो गये. मात्र 29 की उम्र में सिद्धार्थ अनोमा नाम के नदी के तट पर उन्होंने प्रवज्या के वस्त्र धारण कर अपने प्रश्न की खोज में निकल गये. उन्हें रास्ते में एक सन्यासी मिले जिनके चार शिष्य थे कहा जाता है की इन्ही सन्यासी से सन्यास की सारी शिक्षा लेकर तप करना सुरु किया था. अन्न जल का त्याग कर 6 वर्षो तक तप किया किन्तु उन्हें ज्ञान प्राप्त नही हुआ लेकिन एक दिन कुछ स्त्रियाँ पीपल के पेड़ पर पूजा करने आये और एक गीत गा रहे थे. " विणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो, ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नही निकलेगा, पर तारों को इतना कसों भी मत की वे टूट जाए". यह बात बुद्ध को पसंद आ गयी और समझ गए की किसी बात की अति ठीक नही होती है और भूखे-प्यासे रहने के बजे नियमित आहार से ही योग सिद्ध हो सकती है.  इसलिए उन्होंने उस मार्ग को त्याग कर दुसरे मार्ग को अपनाना ठीक समझा उसके बाद बुद्ध ने पीपल के पेड़ पर गहरे ध्यान में चले जाने का निर्णय लिया. काम,क्रोध,मृत्यु  पर विजय प्राप्त कर वैशाली पूर्णिमा के रात में उन्हें प्रथम विद्या पूर्व जन्मों की स्मृति, द्वितीय याम में दिव्य चक्षु,तृतीय याम में प्रतिय समुत्पाद का ज्ञान प्राप्त किया. ज्ञान प्राप्ति के बाद कुछ दिनों तक शांत बैठे रहे किन्तु ब्रम्हा ने उनसे धर्मचक्र प्रवर्तन का अनुरोध किया. भगवान बुद्ध ने प्रथम पंचवर्गीय शिष्य को उपदेश देकर धर्मचक्र का आदेश दिया. इन पंचवर्गीय शिष्य में श्रेष्ठि पुत्र यश और उसके संबंधी एवं मित्र सद्धर्म थे. इस प्रकार बुद्ध के साथ अन्य अनुयायी सभी दिशाओं में भगवन बुद्ध के वचनों का प्रसार किया और स्वंम बुद्ध उरुवेला के लिए प्रस्थान किया. उरुवेला में अहिंसा का प्रचार करते हुए उन्होंने जटिल कश्यपों को उनके एक सहस्त्र अनुयायिओं के साथ चमत्कार और उपदेश के द्वारा धर्म की दीक्षा प्रदान किया महाकश्यप जो बुद्ध के नजदीक शिष्य बन गए थे. इन्होने बौद्ध अधिवेशन की अध्यक्षता निभाई थी. इसके पश्चात मगध के राजा बिम्बिसार को धर्म का उपदेश दिया. रानी खेमा जो बिम्बिसार की रानी थी वह आगे चलकर बौद्ध धर्म की अच्छी शिक्षिका बनी. बिम्बिसार ने वेणुवन नामक उद्यान को भिक्षुसंघ को उपहार स्वरुप दिया. इसके साथ ही आनंद,अनिरुद्ध,महाकश्यप,रानी खेमा,महाप्रजापति,उपली,अंगुलिमाल उनके प्रमुख शिष्य बने. आनंद जो की बुद्ध के भाई थे जिनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज थी. यह बुद्ध के साथ 20 वर्षो तक साथ रहें. इस प्रकार 80 वर्ष तक श्रावस्ती,राजगृह,वैशाली और कपिलवस्तु में भ्रमण कर धर्म का प्रचार किया. राजगृह से बुद्ध पाटली ग्राम होते हुए गंगा पार कर वैशाली पहुचे जहाँ प्रसिद्ध नगर वधु  आम्रपाली ने उनके भिक्षु संघ को भोजन कराया. अंतिम समय में चुंद कमार के आथित्य को स्वीकार किया जहाँ सुकर मधक खाने से खून की उलटी होनें लगी अर्थात रक्तविकार होना शुरु हुआ और शालवन में शाल वृक्ष के बीच लेट गए और अपनी अंतिम श्वास  ली. पाली परंपरा के अनुसार उनका अंतिम शब्द थए " सभी शरीर नाशवान है,आलस्य न करते हुये कार्य करते रहना चाहिए.

बुद्ध की शिक्षाए 

बुद्ध की शिक्षाओ को आर्य सत्य,अष्टांगिक मार्ग,दस पारमिता,पंचशील से समझी जा सकती है.

चार सत्य 

  •  दुःख - इस दुनिया में दुःख है. जन्म से मृत्यु तक सिर्फ दुःख ही दुःख है.
  • दुःख का कारण - अतृप्ति अर्थात अभिलाषा या और पाने की लालसा ही दुःख का कारण होता है.
  • दुःख का निरोध- तृष्णा या अभिलाषा से मुक्ति का रास्ता बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को बताया था.
  • दुःख निरोध का मार्ग- अष्टांगिक मार्ग को बताया है.
अष्टांगिक मार्ग 

बुद्ध के अनुसार चार सत्यता की जाँच अष्टांगिक मार्ग द्वारा पता लगाया जा सकता है. इसकी निम्न मार्ग का अनुसरण करने को कहा था जो इस प्रकार है-

  1. सम्यक दृष्ठि - वस्तुओं को भली-भांति से जानना सम्यक दृष्ठि है.
  2. सम्यक संकल्प - द्वेष,हिंसा तथा निर्भरता से मुक्त विचार ही सम्यक संकल्प है.
  3. सम्यक वाक- सत्य वचन का पालन ही सम्यक वाक है.
  4. सम्यक कम्रांत- अच्छे कर्मो का पालन तथा बुरे कर्मों का त्याग करना 
  5. सम्यक आजीवन- सदाचारण का पालन करना ही समयक आजीवन है.
  6. सम्यक स्मृति- वस्तुओं की वास्तिविक स्वरुप के प्रति जागरूक ही सम्यक स्मृति है.
  7. सम्यक व्यायाम- उचित धर्मों का पालन व बुरे धर्मो का त्याग करना ही सम्यक व्यायाम है.
  8. सम्यक समाधि- चित्त की समुचित एकाग्रता ही सम्यक समाधि है.
पंचशील

भगवान बुद्ध ने अपने अयुयायियों को पांच शिलों का पालन करने की शिक्षा दी है.

  1. आहिंसा - मै प्राणी-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ.
  2. अस्तेय - मै चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ.
  3. अपरिग्रह- मै व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु.
  4. सत्य- मै सदा सत्य बोलने की शिक्षा ग्रहण करता हु.
  5. सभी नशा से विरत- मै पक्की शराब,कच्ची शराब,नशीली चीजों के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ.
 प्रमुख तीर्थ स्थल 

भगवान बुद्ध के अनुयायियों के लिए विश्व भर में पांच मुख्य तीर्थ स्थल है.

  • लंबिनी - यह भगवान बुद्ध के जन्म स्थल है जो नेपाल की तराई में स्थित है. 563 ईसा. पूर्व. यही पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था वर्त्तमान में सम्राट अशोक का एक स्तंभ अवशेष के रूप में इस बात की सबूत पेश करता है .
  • बोधगया- यह भारत में गया धाम में स्थित है यही पर भगवान बुद्ध ने पीपल के पेड़ पर अपनी 6 वर्षो की तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था. जिस वृक्ष पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसे बोधि वृक्ष अर्थात ज्ञान का वृक्ष कहा जाता है.
  • सारनाथ-  सारनाथ बनारस से 6 किलोमीटर दूर पड़ता है. सारनाथ में बोध-धर्मशाला है. यह लाखों की संख्या में बुद्ध के अनुयायी दर्शन के लिए आते है. यह भगवान का पहला उपदेश स्थल है इसी स्थल पर धर्म-चक्र-प्रवर्तन अभियान चलाया था. यह भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर,चोखंडी स्तूप, चतुमुर्ख का सिंह स्तंभ आदि दर्शनीय स्थल है.
  • कुशीनगर- कुशीनगर बौद्ध अनुयायिओं का पवित्र स्थल है क्योकि यही पर बुद्ध ने निर्वाण को प्राप्त हुए थे.कुशीनगर के हिरण्यवती नदी के समीप ही अंतिम साँस ली थी. रंभर स्तुप के निकट उनका अंतिम संस्कार किया गया था. यह उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से 55 km दूर कुशीनगर बौद्ध अनुयायिओं के आलावा पर्यटन प्रेमियों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है.
  • दीक्षा भूमी- दिक्षभुमी नागपुर शहर में स्थित पवित्र एवं महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल है. यही पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने १४ ओक्टुबर 1956 को विजयदशमी के दिन पहले स्वंम अपनी पत्नी सहित बौद्ध धर्म का दीक्षा ली थी और फिर 5 लाख हिंदु दलित समर्थकों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी. 1956 के बाद से हर साल देश-विदेश से 20-25 लाख बुद्ध और आंबेडकर के अनुयायी आते है.

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

सिंधु-घाटी की सभ्यता क्या है ?

 मानव इतिहास 

मानव रचना उत्पति बड़ी रोचक तरीके से हुआ है, कहा जाता है पहले पृथ्वी पर डायनासोर का राज हुआ करता था डायनासोर जो विशालकाय जीवो में से एक थे. जिसका अवशेष मानव ने खुदाई से प्राप्त किया है. कहा जाता है जो आज हम इंधन के रूप में इस्तेमाल करते है वो उनके शरीर के अवशेष व हड्डियों  से प्राप्त हो रहें है. इतिहासकार कहते है की डायनासोर का अंत एक उल्का पिंड का हमारे धरती से टकराने से हुआ था उस टकराव से जमीन के अन्दर रहने वाले जीव ही बच पाए थे जो एक समय बाद ऊपर जमीन के सतह पर आने लगे थे. उसी क्रम में मानव भी सतह पर आया था जिसमें निरंतर परिवर्तन हो रहा था. मानव पहले बन्दर की तरह होता था इसलिए बन्दर को इन्सान अपना पूर्वज कहता है. मानव जो पहले अफ्रीका के जंगलो में रहता था जो बाद में धीरे-धीरे सभी स्थानों पर फैलने लगे.

 मानव के प्रगति को चार भागो में बाटां गया है जो इस प्रकार से है -

  1.  आदि काल
  2. पाषण काल
  3. मध्ययुगीय काल
  4. आधुनिक काल
आदिकाल 

आदिकाल में मानव का जीवन घुमतु होता था उनके पास कोई घर या औजार नही होता था. शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे. उनका कोई स्थाई जीवन यापन का तरीका नही था. अपनी शुरक्षा जंगलो में छुप कर करते थे. ये गुफाओं में रहा करते थे.

पाषण काल

पाषण काल से तात्पर्य है की पत्थरों का युग. इस युग में मानव पत्थरों का उपयोग औजार बनाने में किया करते थे और गुफाओं में रहा करते थे. पत्थरों से बने हथियार से जानवरों का शिकार किया जाता था. इनका मुख्य आहार कंद-मूल, फल, और शिकार से प्राप्त मांस हुआ करता था.

पाषण काल को आप तीन भागों में विभक्त करके समझ सकते है. जो इस प्रकार है-

  • पुरापाषण काल
  • नव पाषण काल 
  • ताम्र पाषण काल
पूरापाषण काल(२५००० ई. पूर्व.-10000 ई. पूर्व.)

यह मानव इतिहास का प्रारंभिक दौर और आदिकाल का अंतिम दौर था. जिसमे मानव पत्थरों से हथियार बनाकर जानवरों का शिकार किया करते थे. पूरापाषण काल 25००० ई. पूर्व. से 10000 ई. पूर्व. तक का समय था. इस समय मानव पत्थरों से बने गुफाओं में रहा करते थे. इनका हथियार नुकीले पत्थरों से बना होता था और इनका मुख्य भोजन कंद-मूल,फल और मांस हुआ करता था. 

 नवपाषण काल(६००० ई. पूर्व.-१००० ई. पूर्व.)

इस युग में मानव जानवरों का शिकार अपने नये पत्थरों से बने हथियार से किया करते थे. मानव पत्थरों से हाथ की कुल्हाड़िया,दतैल आदि हथियार का उपयोग करते थे. मानव इस सयम पत्थरों से बने गुफाओं में और फल, कंद-मूल व जानवरों के मांस का, आहार के रूप में खाया करते थे.

ताम्र पाषण काल

यह नव पाषण का अंतिम और ताम्र पाषण काल का उदय का समय था. इस युग में मानव धातुओं का प्रयोग करना सुरु किया था. तांबे से हथियार बनाया जाता था. आप इसे नये युग का आरम्भ भी मान सकते है. 

सिंधु-घाटी की सभ्यता

सिंधु घाटी की सभ्यता(2500 ई. पूर्व. से 1750 ई. पूर्व.)

सिंधु घाटी की सभ्यता में दो नाम प्रचलित है हडप्पा और मोहनजोदड़ो. सिंधु घाटी की खुदाई सर दयाराम सहनी के नेतृत्व में सन् 1721 में  हडप्पा की खुदाई किया गया था. उसके बाद अगले साल सन् 1722 में सर राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खुदाई की गयी थी. जिसका उलेख सबसे पहले चार्ल्स मैसन ने सन् 1726 में उलेख किया था. इस सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो,काली,बंगा,लोथल,धोलावीरा,राखिगड़ और हड़प्पा प्रमुख केंद्र हुआ करता था. इतिहासकरो के अनुसार यह अत्यंत विकसित शहर थे.

 इसकी सबसे विशेष बात थी यह की नगर निर्माण शैली जो अत्यंत सुन्दर और व्यवस्थित ढंग से बने होते थे. यह की सड़के एक दुसरे को समकोण पर काटते थे और नगर आयताकार खंड में बंटा हुआ था. हड़पा और मोहनजोदड़ो के अपने अपने दुर्ग बने हुए थे जो सामान्य लोगों के घर से काफी बड़े और भव्य हुआ करता था जिस पर मिले सबूत के अनुसार उन भवनों में राज परिवार रहा करते थे. सामान्य लोगो की भवन भी बड़े बड़े थे. इन सबको देख कर लगता था की ये नगर अत्यंत सभ्य व विकसित हुआ करता था. मोहनजोदड़ो में खुदाई से प्राप्त विशाल सार्वजनिक स्नानागार जिसका जलाशय दुर्ग में हुआ करता था यह 11.88 मीटर लम्बा और 7.1 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है. तल तक जाने के लिए सीडी बनाई गयी थी स्नानागार का फर्श पकी ईटो से बना हुआ था पास में ही कुआँ और कपडे बदलने के लिए रूम बना हुआ था. कुएं से पानी भरा जाता था. सबसे अद्भुत संरचना वह की पानी निकास नाली थी जो अत्यंत सुनियोजित तरीके से बनाया गया था. सभी घरो से पानी एक नली द्वारा बाहर निकलता था . यह हर नगर के हर छोटे और बड़े माकन में प्रांगण और स्नानागार होता था. जो उस समय के लिए अद्भुत था. इसके साथ ही वह के बड़े-बड़े अनाज रखने के लिए कोठार का निर्माण किया गया था. 

भारत के इन राज्यों में सिंधु घाटी के शहरों के नाम है-

  • गुजरात में - रंगपुर,लोथल,धोलावीरा,देसुल
  • हरियाणा में - राखिगड़,कुणाल,बनवली
  • पंजाब- बाड़ा,रोपड़,संघोल
  • महाराष्ट्र में - दैमाबाद, बनावली, कुणाल,मिताथल 
  • राजस्थान में- कालीबंगा
  • जम्मु-कश्मीर में - माडा
  • उत्तर-प्रदेश - अलमगीरपुर,
सिंधु -घाटी के लोगो का जीवन के बारे में इस प्रकार से समझ सकते है -

सिंधु-घाटी की सभ्यता


आर्थिक जीवन

सिंधु -घाटी की आर्थिक जीवन काफी संपन्न हुआ करता था इस बात को निम्न बांतों से समझा जा सकता है-

1. व्यापार 

  •  सिंधु-घाटी में मिले साक्ष के अनुसार पता चलता है की वह पर व्यापार किया जाता था. जो काफी फला-फुला था . सिंधु-घाटी सभ्यता में पत्थर,धातुओं,शिप,शंख आदि का व्यापार किया जाता था.
  • राजस्थान में तांबे तथा जावर में चांदी का व्यापार किया जाता था.
  • कर्नाटक से सोने का,
  • ओमान से तांबे का व्यापार,
  • गुजरात,ईरान और अफगानिस्थान से बहुमूल्य पत्थरों का आयात किया जाता था.

2. कृषि व पशुपालन 

सिंधु-घाटी नदी के किनारे होने के कारण वह की भूमि अत्यंत उपजाऊ होती थी. जिससे वह के लोग खेती किया करते थे. बाड़ से बचने के लिए ईंटो से दीवार बनाया गया था. वह के लोग बाड़ के बाद बीज रोपण करते थे और अगली बाड़ आने से पहले फसल काट लेते थे. सिंधु-घाटी की सभ्यता में लोग गेहू,जौ,राई,मटर,ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे. इसके आलावा वे तिल और सरसों,कपास भी उपजाते थे.

इसके साथ सिंधु-घाटी सभ्यता में पशुपालन के भी साक्ष्य मिले है. उस समय के लोग कुत्ते,बिल्ली,मुर्गिया,बैल-गाय,भैस,बकरी,भेड़ और सूअर पाला किया जाता था.

3. उद्योग-धन्धे 

इन्हें शिल्प और तकनिकी का भी ज्ञान था  यह कस्य,टिन से बने मुर्तिया प्राप्त किया गया था. यह नगरों में कई उद्योग-धन्धे प्रचलित थे जैसे मिट्ठी के बर्तन बनाना,मिट्ठी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाया जाता था. इसके साथ ही कपडे का व्यवसाय,जौहरी का काम और मनके व ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था.

सामाजिक जीवन 

सिंधु-घाटी में प्राप्त अवशेष से ज्ञान होता है की वह के लोगों के सामाजिक जीवन में धर्म का स्थान था वह के लोग धार्मिक हुआ करते थे. स्त्री के मूर्ति में मिले गर्भ से पौधे का उत्पत्ति दिखाया गया था. इससे लगता है वह के लोग धरती को माता के रूप में पूजते थे. सरस्वती नदी से प्राप्त पानी से उनके कुएं भरे जाते थे इसलिए वे लोग कुएं के सामने दीप जलाने का साक्ष मिला था. इसके साथ ही 4 मुख वाले शिव के अवतार एकलिंगनाथ जी की पूजा की जाती थी. सिन्धु-घाटी के लोग अपने खेतों व नदी किनारे पूजा किया करते थे और स्नान करने का नियम था होगा इसलिए नगरों मर बड़े-बड़े स्नानागार बनाये होंगें ताकि डुबकी लगाकर पूजा अर्चना किया जाता था होगा. 

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

ह्रदय या दिल की संरचना व उनके कार्य भाग का वर्णन.

ह्रदय या दिल की संरचना व उनके कार्य भाग की वर्णन.

ह्रदय

आपका ह्रदय एक मांसपेशिया से बना एक खोखला अवयव है हृदय और रक्त कोशिकाए आपके पुरे शरीर में रक्त के द्वरा  आक्सीजन  और जरुरी पोषक तत्त्व पहुचाते हैं. ह्रदय आपके रक्त से कार्बनडाइ और गैर अपशिष्ट पदार्थो को बाहर निष्काषित करता है.यह एक पंप सिस्टम होता है जो पुरे शरीर में रक्त पहुचता हैं. ह्रदय को आप दिल के नाम से भी जानते है या अंग्रेजी में हार्ट कहा जाता है.

ह्रदय की के बारे में जानकारी

ह्रदय या दिल की जानकारी कुछ इस प्रकार से है -

  • आपके यह दिल का वजन पुरुषों में 300 से 350 ग्राम तथा महिलाओं में 250 से 300 ग्राम होता है. 
  • आपका दिल एक मिनट में 72 बार धड़कता है और पुरे जीवन काल में 2.5 अरब बार धड़कता है.
  • मानव ह्रदय 1 बार में 70  मिली लीटर रक्त पंप करता है. इसलिए ह्रदय  को पंप मशीन भी कहा जाता है. एक दिन में 7600 लीटर तथा पुरे जिवल काल में 200 मिलियन लीटर रक्त पंप करता है.

आपके दिल की संरचना व कार्य भाग

ह्रदय या दिल की संरचना व उनके कार्य भाग की वर्णन.

मानव शरीर में दिल सामान्यः वक्ष में बाएं ओर स्थित होता है. आप इसे अपने बाएं ओर महसूस कर सकते है. कभी -कभी यह कुछ लोगो में दायें ओर भी होती है किन्तु ऐसे केस बहुत कम दिखाई पड़ते है. आपके ह्रदय के दो पक्ष में बांटा गया हा. दो अलिंद और दो वेंट्रिकल या दो उपरी कक्ष और दो निचला कक्ष.

  • दायां आंलिंद(right atrium) - वेना कावा के माध्यम से शरीर से ऑक्सिजन रहित रक्त प्राप्त करता है. और दायां आंलिंद ऑक्सिजन रहित रक्त को दायां वेंट्रिकल में प्रवाहित करता है, जिसे फेफड़े से ऑक्सिजन के लिए पंप करता है.
  • बायां आंलिंद(left atrium)- बायां आंलिंद फुफ्फुसीय नसें(pulmonary vien) के माध्यम से शरीर से ऑक्सिजन रहित रक्त प्राप्त होता है. जिसे बाएं वेंट्रिकल में पंप करता है. बायां वेंट्रिकल पुरे शरीर में ऑक्सिजन युक्त रक्त को प्रवाहित करता है.
  • बायां निचला भाग- शरीर के अंगों और ऊतको में ऑक्सिजन युक्त रक्त पंप करता है और आवश्यक पोषक तत्व और ऑक्सिजन प्रदान करता है.
  • दायां वेंट्रिकल- ऑक्सिजन रहित रक्त को ऑक्सिजन के लिए फेफड़े में भेजता है और फेफड़े में रक्त से कार्बनडाई को हटाने और ऑक्सिजन की पूर्ति करती है.  

 ह्रदय के कार्य

ह्रदय के महत्वपूर्ण कार्य है जो इस प्रकार से है-

  • हमारे शरीर में दिल का महत्वपूर्ण योगदान है यह रक्त की सफाई व पुरे शरीर में पहुचाने का कार्य करता है.
  • ह्रदय पुरे शरीर में पंप मशीन का कार्य करता है. जो रक्त परिसंचरण को बनाए रखता है.
  • ह्रदय ऑक्सिजन रहित रक्त को एकत्र करता है और फेफड़े में ऑक्सिजन के लिए भेजता है. कार्बनडाई को रक्त से अलग करता है.
  • ह्रदय ऑक्सिजन युक्त रक्त को पुरे शरीर में भेजता है.
  • ह्रदय अंगों और ऊतको कों पोषक तत्व और ऑक्सिजन प्रदान करता है.
  • फुफ्फुसीय नस के माध्यम से ऑक्सिजन रहित रक्त प्राप्त कर बाएं वेंट्रिकल में पंप करता है.
  • ह्रदय रक्त की सफाई करता है.
  • ह्रदय रक्तचाप(blood pressure) को कंट्रोल करके रखता है.
  • यह हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है.

ह्रदय में होने वाले रोग 

  • ह्रदय रोग 
  • ह्रदय के नसों में विकार हो सकता है.

रविवार, 14 जनवरी 2024

प्रजनन,पुरुष व महिला प्रजनन(लिंग व योनी) अंग की संरचना व कार्य

 प्रजनन 

अपने समान जीव उत्पन्न करने की क्षमता को प्रजनन क्रिया कहते है. इसमें उख्य भूमिका शुक्राणु की होती है शुक्राणु मादा के अंडकोष में अंडे का निर्माण करती है और गर्भाशय में भेजती है और गर्भ धारण करती है. यह प्रक्रिया धीरे-धीरे समय अनुसार होती है. मानव में 9 माह का समय होता है. वाही दुसरे जीवों में समय में अंतर हो सकता है.

पुरुष प्रजनन अंग 

प्रजनन,पुरुष व महिला प्रजनन(लिंग व योनी)


पुरुष प्रजनन अंग में वृषण कोष,वृषण,एपीडीडिमिस,वास डिफरेंट,प्रोस्टेट,और शुक्राणु शामिल होते है जिसे लिंग  कहते है. आपका लिंग मूत्रमार्ग और प्रजनन तंत्र का हिस्सा होता है.

लिंग (panis)

आपका लिंग श्रोणि हड्डियों से जुड़ा होता है. जो एक शैप्ट का हिस्सा होता है. शंकु के आकार का दिखने वाला अंतिम भाग को ग्लांस पेनिस कहते है. इस ग्लांस पेनिस के नोक पर मूत्रमार्ग बना होता है जहा से वीर्य व पेशाब बाहर निकलता है. आपके लिंग में इरेक्ट्रइल ऊतक में उपस्थित तिन बेलनाकार स्थान जो खून से भरी रहती है जो मूत्रमार्ग के आस पास के हिस्से को घेरे रहती है.जब यह जगह भार जाती है तो लिंग में इरेक्सन होता है.

वृषण कोष 

वृषण कोष मोटे चमड़ी से बना होता है जो वृषण के ऊपर बना होता है और उसकी सुरक्षा करता है. वृषण को ठंडा कर रखता है ताकि वीर्य का निर्माण सही तरीके से हो सके.

वृषण

वृषण या नर अंडाशय भी कह सकते है जिसमें शुक्राणु का निर्माण होता है. यह अंडाकार होते है जिसकी संख्या दो होती है. बाया वाला वृषण दाये वाले वृषण से निचे लटका रहता है. इसके दो कार्य है 1. वीर्य उत्पन्न करना 2. टेस्टोस्टेरान उत्पन्न करना होता है.

एपीडीडीमिस 

एपीडीडीमिस में लगभग २० फीट लम्बी एक काइल्ड माइक्रोस्कोपिक टूयूब होती है. इसका कार्य शुक्राणु को एकत्र करना है और स्त्री बीज क्र रूप में शुक्राणु को तैयार करता है.

वास डिफरेंट 

वास डिफरेंट एक मजबूत ट्यूब होती है जो एपीडीडीमिस से वीर्य को ले जाती है और शुक्राशय से जुड़ जाती है.

मूत्रमार्ग 

आपका यह मूत्रमार्ग ग्लास पेनिस के अंतिम हिस्से में होता है जहा पर छिद्र बना होता है जिससे मूत्र व वीर्य निकलती है.

प्रोस्टेट 

प्रोस्टेट मूत्राशय के निचे उपस्थित होता है जो मूत्रमार्ग को घेरे रहते है. उम्र के साथ साथ इसकी आकार में भी वृधि होती है. प्रोस्टेट का बड़ा होना मूत्रमार्ग के ब्लाकेज का कारण भी हो सकता है.

 शुक्राणु का निर्माण 

जब शुक्राणु तरल पदार्थ प्रोस्टेट में बहने लगते है और वास डिफरेंस सें मिल जाते है. तब प्रोस्टेट और शुक्राशय में ये तरल पदार्थ वीर्य विकशित करते है. जो इजेकुलेसन के दौरान बहने लगते है.

महिला प्रजनन अंग 

प्रजनन,पुरुष व महिला प्रजनन(लिंग व योनी)

योनी(vagina)

योनी में प्रजनन,मासिक धर्म,गर्भाशय और प्रसव में मुख्य भूमिका निभाती है. योनी एक खीचावदार,मंसल नलिका होती है जिसकी फैली हुई मांसपेशिया ट्यूब बाहरी योनी छिद्र से गर्भाशय ग्रीवा तक पोस्टेरोसुपिअर रूप में फैली होती है.

फैलोपियन  ट्यूब

फैलोपियन ट्यूब  गर्भाशय और अंडाशय के बीच में मार्ग का काम करता है. जब अंडाशय में अंडे का निर्माण होता है तो यह ट्यूब अंडे को गर्भाशय की ओर ले जाने का कार्य करता है.

फिम्ब्रिया 

फिम्ब्रिया ट्यूब फैलोपियन ट्यूब के अंत में स्थित होता है फिम्ब्रिया सिलिया या बल जैसे संरचना में पंक्तिबंध होते है जो अंडे को गर्भाशय तक ले जाने का कार्य करता है.

अंडाशय 

अंडाशय यह महिलाओं के शरीर में हार्मोन्स व अंडाणु उत्पन्न करने का कार्य करता है. यह शुक्राणु के साथ निषेचन करता है और अंडा का निर्माण करता है और गर्भाशय में भेजती है.

गर्भाशय 

यह नाशपाती के आकार का होता है जिसकी चौड़ा भाग पंड्स यथा पतला भाग निचे इस्थमस कहलाता है. यह 7.5 सेंटीमीटर लम्बी और चौड़ाई 5 सेंटीमीटर व 2.5 सेंटीमीटर दिवार मोटी होती है.

गर्भाशय में गर्भ धारण प्रक्रिया

जब हजारों की संख्या में शुक्राणु योनी द्वार से प्रवेश करता है तो जो अंडाशय तक पहुचते पहुचते एक ही शुक्राणु जीवित रह जाती है और एक ही शुक्राणु अंडाशय तक पहुच पाती  है जो निषेचन प्रक्रिया पूर्ण कर अंडे के रूप में परिवर्तित हो जाती है. इसके बाद अंडा को फिम्ब्रिया फैलोपियन ट्यूब के मार्ग से गर्भाशय तक पहुचाती है. गर्भाशय में बच्चे का भ्रूण तैयार होने की प्रक्रिया सुरु होती है जो एक निश्चित समय के बाद पूर्ण रूप में आके योनी द्वारा बाहर आती है. कुछ स्थिति में अंडा भ्रूण नही बना पाती और माषिक धर्म चक्र द्वरा योनी द्वारा ब्लड के रूप में बाहर निकलती है.

जुड़वाँ बच्चे होने के कारण

समान रूप में होने वाले बच्चे- जब एक शुक्राणु अंडा के साथ निषेचन प्रक्रिया करता है और दो भागो में विभाजित हो जाता है तो होने वाले जुड़वाँ बच्चे एक समान होते है. इसमें लड़के-लड़के और लड़की लड़की होती है.

अलग अलग होने वाले बच्चे- जब शुक्राणु अलग- अलग अण्डों में होते है तो इस निषेचन प्रक्रिया में बच्चे अलग अलग होते है.

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

यकृत के संरचना व कार्य,रोग,लक्षण,रोग से बचने के उपाय

यकृत के संरचना व  कार्य,रोग,लक्षण,रोग से बचने के उपाय

 
यकृत(LIVER)

 यकृत यानि लीवर या जिगर,कलेजा भी कह सकते है. आपका यह लीवर शारीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है जो आपके पेट के अन्दर उपरी दाहिने हिस्से में ,डायाफ्राम के नीचे और पेट के दाहिने किडनी और आंतों के ऊपर स्थित होते है. इसका रंग लाल-भूरा होता है और इसके दो भाग होते है. एक मानव यकृत का वजन लगभग 1.5 किलोग्राम और चौड़ाई लगभग 15 सेंटीमीटर होती है.आपका यह यकृत पाचन तंत्र का हिस्सा है जो वसा को पायसीकृत करने में सहायता करता है जिससे वसा विघटित होता है. चूँकि वसा पानी में अघुलनशील होती है.इसलिए काइलोमइक्रान के रूप में अवशोषित करता है. मानव यकृत की खोज 200 ई. प्राचीन काल में चिकित्सकों ने ह्रदय और मस्तिस्क के साथ बड़े अंग के रूप में खोजा गया था.

यकृत की संरचना 

मानव शरीर में यकृत की संरचना इस प्रकार बताई गयी -

  • यकृत एक लाल-भूरे रंग का होता है जिसका कार्य भोजन से प्राप्त वसा को काइलोमाइक्रान के रूप में विघटित कर अवशोषित करना है. यकृत के दो भाग है इसका दक्षिण भाग बड़ा होता है जो पेरीटोनियम गुहा के बाहर रहता है.
  • यकृत रेशेदार संयोजी ऊतक से बना होता है इसे ग्लिसन कैप्सूल कहा जाता है.
  • यकृत की कोशिकाए की संरचना लोब्युल नामक सरल संरचना से होती है.
  • यकृत  की नली अमाशय से जुड़ी होती है 
  • लिपो प्रोटीन और एल्ब्यूमिन की बड़ी मात्रा में प्लाज्मा प्रोटीन का अनस्त्रावी स्त्राव हेपेटोसाइट्स द्वारा किया जाता है.

यकृत के प्रकार

यकृत के तीन प्रकार होते है जो लीवर को विभाजित करती है और पाचन क्रिया में सहायक होती है. जो इस प्रकार से हैं 

  1. प्रथम श्रेणी - प्रथम श्रेणी लीवर में आश्रय,प्रयास और भर के मध्य होता है.
  2. द्वितीय श्रेणी- द्वितीय श्रेणी में प्रयास और आश्रय के मध्य भार होता है.
  3. तृतीय श्रेणी- तृतीय श्रेणी लीवर में आश्रय व भार के मध्य प्रयास होता है.
यकृत के कार्य 
पाचन क्रिया में यकृत के निम्नलिखित कार्य है जो इस प्रकार से है -

  • आपके यकृत में पित्त रस का स्त्राव होता है. यह पित्त रस वसा को पय्सिकरण करने में सहायता करता है अर्थात वसा को छोटे-छोटे टुकड़ो में बांट देता है और पित्ताशय में पहुचता है.
  • आपके लीवर में ग्लुकगान हार्मोन पाया जाता है जो एक पेप्टाइड हार्मोन है. ग्लुकागान मुख्य रूप से यकृत कोशिकाए पर ग्लाइकोजेन अपघटन को प्रेरित करता है जिसके फलस्वरूप रक्त शर्करा का सतर बड जाता है.
  • यकृत अवश्यक पड़ने पर ग्लुकोष से ग्लाइकोजन में बदलकर संचय करता है.
  • यकृत वसा व प्रोटीन से ग्लूकोस का निर्माण करती है.
  • लीवर जहरीली अमोनिया को उरिया में बदल देता है जिसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाला जाता है.
  • आपका यकृत कोशिकाए विटामिन A,D,लौह,तांबा आदि का संचय करती है.
  • यकृत की कुफ्फर कोशिकाएं जीवाणु तथा हानिकारक पदार्थो का भक्षण करके शरीर की सुरक्षा करती है.

लीवर में होने वाले रोग 

लीवर में होने वाले रोग जो पाचन क्रिया में बाधक बनते है वो इस प्रकार से है जो निचे दिया गया है.

  • संक्रमण- वायरल संक्रमण के कारण लीवर में सुजन हो सकता है. इससे हेपेटाइटिस A,B,C हो सकता है 
  • सही पाचन - आपको पाचन सम्बंधित परेशानी हो सकती है यह अनुवांशिक भी हो सकती है.
  • शराब से सम्बंधित रोग- आपको शराब पिने पर लीवर सम्बंधित रोग हो सकते है जैसे वसायुक्त यकृत रोग,सिरोसिस,लीवर फ़ैल होना,
  • फैटी लीवर- अगर आप अधिक शराब का सेवन करते है तो आपको फैटी लीवर की रोग हो सकती है जिसमे लीवर डैमेज हो सकता है.
  • सिरोसिस- इस रोग में लीवर के ऊतक की जगह ख़राब ऊतक जगह ले सकते है.
  • लीवर कैंसर - यह शरीर के दुसरे भाग से फैलता है.
  • पित्त स्त्राव के रोग इसमें पित्त सम्बंधित रोग हो सकते है.
  • ग्लूकोस का निर्माण ना कर पाना भी लीवर की बीमारी है.

लीवर में रोग के कारण 

लीवर में रोग होने के निन्म कारण हो सकते है जो इस प्रकार से है-

  • अगर आप अधिक शराब का सेवन करते है तो आपका लीवर में वसायुक्त सम्बंधित रोग हो सकता है.
  • धुम्रपान व तम्बाखू का सेवन करने पर इसके निकोटिन आपके लीवर को गन्दा कर सकते है. जिससे उसमे लीवर सम्बंधित रोग हो सकता है.
  • अनियमित जीवनशैली से भी आपकी लीवर ख़राब हो सकती है.
  • अधिक दवाई का उपयोग करने पर भी लीवर को दमैज हो सकता है 
  • अधिक समय तक मल व मूत्र को  रोककर रखने पर भी लीवर फ़ैल सम्बंधित रोग हो सकता है.
  • प्रदुषण से भी आपके फेफड़े सहित लीवर को भी हानि हो सकती है.

लीवर में होने वाले रोग के लक्षण 

लीवर में होने वाले रोग की पहचान इस प्रकार से कर सकते है जिससे आप समय पर अपना इलाज कर सकते है. आप निम्नलिखित लक्षण को पहचान कर लीवर के रोग को जान सकते है.

  • त्वचा व ऑंखें पिली पड़ जाती है 
  • पेट में दर्द व सुजन हो सकता है.
  • टांग व टखनों में सुजन हो सकती है.
  • पेशाब का रंग गहरा होना.
  • मल के रंग में बदलाव होना
  • गैस बनना और दर्द होना.
  • थकान महसूस करना,
  • त्वचा में खुजली होना,
  • उल्टी होना,
  • कमर में दर्द रहना,
  • नसों में दर्द व सुजन,
  • भूख ना लगना,
  • पाचन क्रिया का सही ना होना,
  • शरीर का वजन काम होना,
  • जी मचलना
  • बार-बार मल आना,
  • मल करते वक्त जलन होना.
लीवर की बीमारी से बचने का उपाय 
निम्नलिखित उपाय का प्रयोग कर आप लीवर में होने वाले रोग से बच सकते है जो इस प्रकार से है-
  • खूब पानी पिया करें.-पानी पिने से आपके शरीर को प्रयाप्त शक्ति मिलती है जिससे आपको पाचन क्रिया में आसानी होती है.
  • व्यायाम - नियमित व्यायाम करने से जीवन शैली में सुधार होती है और पाचन शक्ति बदती है.
  • स्वस्थ वजन- अधिक वजन का बढना सेहत के लिए हानिकारक है.
  • तनाव से दुरी- अगर आप तनाव से दुरी बनायेंगे तो आप कई बीमारी से बच सकते हो इससे आप ताजगी महसूस कर सकते हो.
  • नशीली व व्यसन- नशीली व व्यसन आपके लीवर के साथ जीवन के लिए भी हानिकारक है जो कैंसर का कारण होता है.इसलिए इसका सेवन ना करें.
  • मसालेदार भोजन से आपका हाजमा ख़राब हो सकता है पाचन सम्बंधित विकार हो सकता है. इसका अधिक सेवन नुकसानदायक है.
  • तली व वसायुक्त - ओइली फ़ूड शरीर के लिए हानिकारक होती है जो कई बीमारी का कारण हो सकता है. इससे बचें.
  • हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए जिससे आयरन,विटामिन,प्रोटीन प्राप्त हो सके.
  • विटामिन A,B,C,D युक्त आहार ग्रहण करें.
  • आयरन व प्रोटीन युक्त भोजन खाएं जैसे दाल,हरी सब्जी,दूध,दही,आदि.
  • चीनी का उपयोग ना करें यह मीठा जहर है.
  • नमक का कम सेवन करें
  • ग्रेन टा पिया करें यह शरीर के लिए फैदेमन होता है.
  • पूरी तरह पके हुए भोजन ही ग्रहण करें.
  • डायबिटीज व कोलोस्ट्रोल को कंट्रोल करें. यह रक्त संचार को बाधित करता है.

सलाह 
आपको उचित सलाह यही दिया जाता है की अगर आपको निन्म में से किसी भी लक्षण को जानने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह ले और अपना उचित इलाज कराएँ. देरी आपके लिए लीवर फ़ैल होने का कारण बन सकता है जिससे आपकी जान भी जा सकती है. 

बुधवार, 10 जनवरी 2024

पेट(stomach) की संरचना व कार्य,स्थितियां व विकार,लक्षण,देखभाल

पेट(stomach) की संरचना व कार्य

 पेट(STOMACH)

 पेट एक मांसपेशीय अंग है जो भोजन को पचाने का कार्य करता है.आपका पेट जिसे आप अमाशय कहते है. पेट में भोजन प्राप्त होने पर पेट की मांसपेशिया सिकुड़ने लगती है और एसिड और एंजाइम उत्पन्न कर भोजन को गलाने का कार्य करता है इसके बाद भोजन को छोटी आंत को भेजता है. आपका यह अमाशय ग्रास नली और छोटी आंत के बिच में होता है. आपका पेट गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल का हिस्सा है यह एक लम्बी ट्यूब है जो मुह से सुरु और मलद्वार तक होता है. पेट का आकार सभी में अलग अलग होता है.

पेट के संरचना एवं कार्य 

मानव का पेट मांसपेशिय अंग है जो ग्रासनली और छोटी आंत के बीच में होता है.मानव का  पेट ग्रसनी,ग्रसिका,अमाशय,छोटी आंत,बड़ी आंत,मलाशय,मलद्वार से बना होता है.आपके पेट में सबसे बड़ा आन्तरिक अंग यकृत होता है जिसकी चौड़ाई लगभग 15 सेंटीमीटर और वजन 1.5 किलोग्राम होता है.

आपके पेट के अंगो का वर्णन इस प्रकार है :

ग्रसनी - मुह और नक् के गुहा के पीछे गले का एक भाग होता है जो ग्रसिका और श्वास नली के ऊपर  होता है. ग्रसनी भोजन व हवा को ग्रसिका तक पहुचने का कार्य करती है.

ग्रसिका - ग्रसिका एक संकरी पेशीय नली होती है जो मुख के पीछे ग्रसनी से प्रारंभ होकर अमाशय के सबसे उपरी भाग में आकर मिलती है.ग्रसिका ग्रसनी से प्राप्त भोजन व हवा को स्विच करने का काम करता है.भोजन व हवा इसी नली से होकर अमाशय तक पहुचती है.

अमाशय- अमाशय ग्रासनली और छोटी आंत के बीच में स्थित होती है. जब भोजन ग्रसिका से अमाशय में पहुचती है तो अमाशय एसिड व एंजाइम उत्पन्न करता है और भोजन को बारीक़ टुकड़ो में बाँट देता है और टुकडे भोजन को छोटी आंत में भेजता है.

छोटी आंत- छोटी आंत अमाशय में जुड़ा होता है जिसकी लम्बाई लगभग 9 से 16 फीट होती है और   चौड़ाई व्यास 1.5 इंच का होता है. छोटी आंत भोजन को पचाने व पोषक तत्वों को अवशोषित करने में सहायक होती है.

बड़ी आंत- छोटी आंत में प्राप्त अपोषक भोजन से बड़ी आंत पानी को सोखकर एक ठोस मल में परिवर्तित करता है.और मलाशय में भेजता है. बड़ी आंत की लम्बाई लगभग 5 फीट और चौड़ाई लगभग ४ से 6 सेंटीमीटर व्यास होती है.

मलाशय- बड़ी आंत से प्राप्त मल को एकत्र करता है और मस्तिष्क को निर्देश पहुचता है की मल जमा हो चुकी है.इसके बाद  मलद्वार द्वारा मल को त्याग किया जाता है.     

पेट के शारीरिक रचना के भाग 

मानव पेट के पांच भाग होते है जो इस प्रकार से है :

  1. कार्डिया आपके पेट का उपरी शीर्ष भाग होता है जो भोजन को अन्न प्रणाली में वापस जाने से रोकता है.
  2. फंडस कार्डिया के बगल में और डायाफ्राम के निचे गोलाकार खंड में होता है.
  3. कार्पर्स आपके पेट का सबसे बड़ा भाग है जो पेट को सिकुड़ता है और भोजन को मिलाने का कार्य करता है 
  4. एंट्रम अमाशय में भोजन का तब तक रोककर रखता है जब तक वह छोटी आंत में जाने लायक ना हो जाये.
  5. पाईलोरस यह पेट का निचला भाग है जो इस बात को नियंत्रित करती है की आपका पेट की सामग्री छोटी आंत में कब और कैसे जाएगी.

आपके पेट में उपस्थित परत की जानकारी

आपके शरीर में पेट मांसपेशिया और अन्य कई उतकों की परतों से बनता है जिसका वर्णन इस प्रकार से है :

  • म्युकोसा - यह पेट का अंदरूनी परत है जो पेट खली होने पर म्युकोसा में छोटी-छोटी लकीरें बन जाती है और जब पेट भरता है तो ये लकीरें चपटी होने लगती है.
  • सब म्युकोसा - सब्म्युकोसा म्युकोसा परत को ढकता और सुरक्षा करती है. सब म्युकोसा में सयोजी उत्तक,रक्त वाहिकाएं,लसिका वाहिकाएं और तंत्रिका कोशिकाएं होती है.
  • मस्कुलरिस एक्सटर्न- भोजन को तोड़ने के लिए सिकुड़ती और शिथिल होती है.
  • सेरोसा- सेरोसा झिल्ली की परत होती है जो पेट को दहकती है.

आपके पेट की  स्थितियां व विकार की जानकारी

आपके पेट में होने वाले विकार व स्थितियां इस प्रकार से है:

  • अपच-यह मसालेदार या सही पाचन क्रिया नही होने पर होती है इससे पेट में जलन,दर्द हो सकती है.
  • पेट का कैंसर - पेट में कैंसर होने से कोशिकाएं को नुकसान होने लगता है और घाव भी हो सकता है.
  • गैस- पाचन क्रिया में समस्या होने पर पेट में गैस बनने लगती है. जिससे बदबू आने लगती है.
  • अल्सर रोग - आपके पेट या छोटी आंत में घाव के रूप में हो सकती है.
  • गेस्ट्रोपेरेसिस- इसमें मांसपेशियों के सिकुडन में परेशानियाँ हो सकती है.
  • जठर शोध - पेट इ सुजन होती है.
  • गैस्ट्रिक अल्सर- पेट के परत में चरण होता है जिससे दर्द और खून की बहाव हो सकती है.

      आपके पेट में रोग होने के लक्षण 

आपके पेट में रोग होने के कुछ लक्षण हो सकते है जो इस प्रकार से है:

  • अपच से छाती में जलन हो सकती है.
  • आपको बुखार आ सकता है.
  • आपको उल्टी हो सकती है.
  • आपको मल करने में परेशानियाँ हो सकती है.
  • आपके मल में  मवाद या खून आ सकता है.
  • आपको दस्त हो सकता है.
  • आपको अचानक और तेज पेट दर्द हो सकता है.

अपने पेट का देखभाल करने के जरुरी बातें 

निचे दिए गए निम्नलिखित बातों का पालन करने पर आपको पेट की बीमारी से निजात पा सकते हैं.जो इस प्रकार से है:

  • आपको शराब का सेवन नही करना चाहिए.
  • आपको मसालेदार भोजन से दुरी बनानी चाहिए.
  • नियमित व्यायाम करना चाहिए  आपको रोज 30 मिनट तक व्यायाम करना चाहिए.
  • तली हुई या आयल फ्री भोजन का सेवन करें.
  • आपको धुम्रपान या तम्बाखू का सेवन नही करना चाहिए.
  • आपको हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए.
  • दाले खाया करें.
  • मल को जादा देर तक रोक कर ना रखें.
  • 2-3 लीटर पानी रोज पीना चाहिए.
  • रोज सुबह शाम योगा करना चाहिए.
  • किसी भी जगह पर जादा देर तक ना बैठें क्योकि इससे आपको गैस की प्रॉब्लम हो सकती है.

सलाह

आपके शरीर का पेट भी दिमाग की तरह होती है जो शारीर का जरुरी पार्ट है इसके बिना आपको पोषण व अन्य सामग्री प्राप्त नही होगी. इसलिए आपको अपने पेट का ख्याल रखना चाहिए. इसके लिए ऊपर दिए गए बातों का पालन कर सकते है. अगर आपको पेट से सबंधित सीरियस प्रॉब्लम होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए .

मंगलवार, 9 जनवरी 2024

ऊँगली व नाखून की संरचना,नाखून का विकास, (आपकी उंगलिया चटकाने से आवाज क्यों आती है?)

ऊँगली व नाखून की संरचना

 
उंगली(Finger)

मानव शरीर में दो हाथ होते है जिनमे पांच-पांच उंगलिया होती है. इसमें अंगूठा,तर्जनी,मध्यमा,अनामिका,कनिष्ठ होती है. हमारे हाथ  के उँगलियों में 12 और अगूठा में 2  हड्डी होती है. उँगलियों में पाए जाने वाले हड्डी का नाम फलंगेस होता है. हाथ की तरह पैरों में भी 14 हड्डियाँ पाई जाती है.

हमारी उँगलियाँ टेंडन नामक नरम उतक के कारण हिलने लगती है.जब आपकी हाथ की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती है तो टेंडन हड्डियों को खीचने लगते है और हाथ हिलने लगते है.

टेंडन मानव शरीर में टिश्यूज से बनी एक रस्सी जैसे संरचना होती है जो हड्डियों को पेशियों से जोड़ने का काम करती है.टेंडन हड्डी और मांसपेशियों के बिच में होती है और चमकीले सफेद रंग के होते है आपके पुरे शरीर में 4000 टेंडन होते है जो हड्डियों और मांसपेशियां को जोड़कर रखते है.


उंगलिया चटकाने पर आवाज आना 

इसका कारण उंगली के जॉइंट में उपस्थित एक फ्लुड्स से होता है. जिसे साइनोवियल(synovial फ्लूइड) फ्लुड्स कहते है. जब हम उंगलियों को चटकते है तो जॉइंट्स में ये फ्लुड्स गैस रिलीज करने लगते है जो बबल्स के रूप में फूटने लगते है.

उंगलिया चटकाने से क्या होता हैं

जायदा उंगलिया चटकाने से आपके हाथो के ग्रिप स्ट्रेंथ कमजोर पड़ जाती है और हाथों में सुजन की समस्या भी हो सकती है. उँगलियों में दर्द हो सकता है और आपकी उंगलिया काम करने में अक्षम हो सकती है. इसलिए आप सभी उँगलियों का ख्याल रखे. 

नाखून(Nail)

नाखून मानव शरीर में हाथ व् पाव के उगलियों के अंतिम हिस्से के उपरी सतह पर एक ठोस कवचनुमा आकार की होती है जो एक कठोर कराटिन से बना होता है. पशुओं की सिंग भी इसी पदार्थ से बना होता है.नाखून को आप तकनिकी रूप में नेल प्लेट भी कह सकते है. 

केराटिन बाल व् नाखूनों में पाया जाने वाला एक प्रोटीन होता है जो केतेटिनोसाइट्स के रूप में जाने वाले कोशिकाओं से निकलते है. मानव अपनी नाखूनों को चार प्रकार में बाट सकता है. जैसे लम्बे नाखून,चौड़े नाखून,छोटे नाखून,तंग नाखून 


नाखून की संरचना,नाखून का विकास,

नाखून की संरचना 

नेल प्लेट के नीचे मैट्रिक्स एक टेराटोजेनस झिल्ली के रूप में पाया जाता है. मैट्रिक्स कई तंत्रिकाए,रक्त वाहिकाए के साथ जुडी होती है.नेल प्लेट चेत्र नाखून का पोषण छेत्र होता है. यही से नाखून पोषण प्राप्त करता है और बढता है. आपके नाखून प्लेट के कई आकार हो सकता है जैसे धनुषाकार,सपाट. नाखून प्लेट एपिडर्मिस और गहरी डर्मिस ऊतको से बनी होती है. गहरे डर्मिस एक जीवित ऊतक होते है जो ग्राथिन्यों और कोशिकाओं को घेरे रहते है. एपिडर्मिस नाखून प्लेट के नीचे स्थित होता है.

नाखून का विकास 

नाखून का बढता हुआ हिस्सा एपिडर्मिस के नीचे नाखून के पास टर्मिनल पर त्वचा के नीचे होता है. टर्मिनल फलेजों की संख्या नाखून की वृद्धि दर निर्धारित करती है. आपकी तर्जनी उंगली की नाखून बाकि उंगली के नाखून से अधिक वृद्धि करती है.

नाखून में होने वाले रोग 

  • नाखून विटामिन D,विटामिन A,कैल्शियम की कमी के कारण होती है.
  • विटामिन बी12 की कमी से नाखून के सिरे गोल हो जाते है और उसके बाद नाखून काले,सूखे हो जाते है.
  • हिमोग्लोबिन की कमी से नाखून सफेद पड़ने लगते है और गुलाबी रंग कम होने लगते है.
  • लिनोलिक एसिड की अनुपस्थिति से नाखून झड़ने और फटने लगते है.
  • आयरन की कमी से नाखून पिला पड़ने लगता है.